नंदानगर के आठ किलोमीटर के दायरे में कुदरत ने ऐसा कहर बरपाया है कि हर कदम पर तबाही के निशान नजर आ रहे हैं। अपने उजड़े घर, खेत-खलिहान देखकर आपदा प्रभावितों की आंखों से आंसू थम नहीं रहे हैं।

विनसर पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित जिस महादेव मंदिर में लोग सुख-समृद्धि की कामना करते थे उसी पहाड़ी से मिट्टी और मलबे का ऐसा सैलाब फूटा कि देखते ही देखते हंसते-खेलते गांव मलबे के ढेर में तब्दील हो गए।
नंदानगर के आठ किलोमीटर के दायरे में कुदरत ने ऐसा कहर बरपाया है कि हर कदम पर तबाही के निशान नजर आ रहे हैं। अपने उजड़े घर, खेत-खलिहान देखकर आपदा प्रभावितों की आंखों से आंसू थम नहीं रहे हैं।
अब इन ग्रामीणों के सामने अपने उजड़े घरों को फिर से बसाने की सबसे बड़ी चुनौती है। दिन में वे अपने टूटे घरों को देखने आते हैं और रात को राहत शिविरों में शरण लेते हैं। रिश्तेदारों और शुभचिंतकों का आना-जाना लगा हुआ है जो उन्हें ढाढ़स बंधा रहे हैं। पूरे क्षेत्र में सड़कें, पेयजल लाइनें और बिजली की व्यवस्था पूरी तरह तहस-नहस हो चुकी है।
