चिपको आंदोलन एवं गांधीवादी विचारों की प्रयोगशाला के रूप में अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाने वाले दिवंगत सुंदरलाल बहुगुणा की पत्नी बिमला बहुगुणा का निधन हो गया। उन्होंने शुक्रवार को 93 की उम्र में दून के शास्त्री नगर स्थित बेटे राजीव नयन बहुगुणा के आवास पर आखिरी सांस ली। उनका अंतिम संस्कार शनिवार को ऋषिकेश स्थित पूर्णानंद घाट पर किया जाएगा।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी समेत विभिन्न संगठनों के पदाधिकारियों ने उनके निधन पर शोक जताया। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर सीएम धामी ने लिखा कि ईश्वर पवित्र आत्मा को अपने चरणों में स्थान दें। साथ ही उनके परिवार को इस दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें। जबकि, सूचना मिलते ही उनके आवास पर आम से खास लोगों को जमावड़ा लग गया।
बेटे राजीव नयन बहुगुणा ने बताया, महिला शिक्षा एवं ग्रामीण भारत में सर्वोदय के विचार को दृष्टिगत रख, दिसंबर 1946 में कौसानी में लक्ष्मी आश्रम की स्थापना की गई थी। अपनी साफ समझ, कड़ी मेहनत और समर्पण की भावना ने बिमला नौटियाल को छोटे समय में ही आश्रम की सबसे प्रिय छात्रा बना दिया। जब विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में आश्रम के प्रतिनिधित्व की बात सामने आई तो इसके लिए भी बिमला नौटियाल का ही नाम चुना गया था। विनोबा भावे के मंत्री दामोदर ने बिमला को वनदेवी की उपाधि देते हुए कहा कि ऐसी लड़की उन्होंने पहले कभी नहीं देखी, जो बहुत आसानी और मजबूती से नौजवानों का सही मार्गदर्शन करती हैं।
बिमला नौटियाल ने पिता नारायण दत्त को जो पत्र लिखा था, वह महात्मा गांधी की नजदीकी शिष्या सरला बेन (बहन) को दिखाया था। इसमें अंतिम रूप से आदेशित था कि अमुक दिनांक, अमुक माह में उनका विवाह सुंदरलाल के साथ तय कर दिया गया है। विवाह की तिथि में कुछ ही दिन बचे थे। उन्हें जल्दी घर बुलाया है। सरला बहन ने बिमला से पूछा कि तुम क्या सोचती हो। उन्होंने उत्तर दिया मैंने हमेशा सुंदरलाल को भाई की तरह माना है, मैं एकदम उस दृष्टि को नहीं बदल सकती। दूसरी तरफ यदि मैं इनकार करूंगी तो गुस्सा होकर पिताजी मेरी छोटी बहनों की शिक्षा रोककर जल्दी में उनकी शादी कराएंगे, फिर पहाड़ में कोई अन्य व्यक्ति नहीं है, जिससे मेरे विचार मिल सकें। मैदान में भी विजातीय विवाह के लिए पिताजी तैयार नहीं होंगे। मुझे निर्णय करने और मन को तैयार करने में कम से कम एक वर्ष का समय चाहिए।